From Shayar Deepak Sharma |
Sunday 30 May 2010
Wednesday 26 May 2010
सेमल जैसी काया लेकर
सेमल जैसी काया लेकर देखो चंदा आया रे
रौशन जगमग मेरे अंगना देखो उतरा साया रे
पूनो वाली ,रात अमावास जैसी लगती दुनिया को
चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे ।
दूध कटोरे माफिक आंखिया,बिन बोले कह देती बतिया
रात बने दिन जगते जगते ,दिन भये सोते सोते रतिया
मुंह से दूध की लार गिरे तो मां ने हाथ फैलाया रे
चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे ।
सर्वाधिकार सुरक्षित @ दीपक शर्मा
कवि दीपक शर्मा
रौशन जगमग मेरे अंगना देखो उतरा साया रे
पूनो वाली ,रात अमावास जैसी लगती दुनिया को
चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे ।
दूध कटोरे माफिक आंखिया,बिन बोले कह देती बतिया
रात बने दिन जगते जगते ,दिन भये सोते सोते रतिया
मुंह से दूध की लार गिरे तो मां ने हाथ फैलाया रे
चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे ।
सर्वाधिकार सुरक्षित @ दीपक शर्मा
कवि दीपक शर्मा
Subscribe to:
Posts (Atom)