Saturday 29 August 2009

अपना हिंदुस्तान है , प्यारा हिंदुस्तान है



लाख बदहाली , तंगी और फाके सही

अपनी किस्मत में भूख के खाके सही

जि़स्म नंगा सही , आदमी परेशान सही

सिर पे नाचता मुश्किलों का आसमान सही

झूठ , धोखे , फरेबों का ज़माना सही

अपनों में अपना चाहे बेगाना सही

दुनिया चाहे लाख इसकी बुराई करे

गरीब, पिछड़ा कहे चाहे रुसवाई करे

फिर भी इसकी हम, हमारी ये पहचान है

अपना हिंदुस्तान है , प्यारा हिंदुस्तान है ।





और भी भला ऐसा कहीं होता है क्या

मौत हो जब किसी दूर के मकान में

आँखे रोती हैं पूरी गली की , गाँव की

शहर जाता है पूरा ही शमशान में

मातम ऐसा की जैसे गया अपना कोई

तोड़कर सारे नाते, सभी बंधन तोड़ के

नीर नयनों में भर के पीटे छातियाँ

आदमी देते विदाई सब काम छोड़ के

शहर होता है वो बसते इंसान हैं

अपना हिंदुस्तान है , प्यारा हिंदुस्तान है ।




जब मोहल्ले की कोई लड़की सयानी हुई

फ़िक्र सबको ही बस उसकी जवानी हुई

चिंता माँ - बाप से ज्यादा उन्हें खा गई

एक बुआ मोहल्ले की रिश्ता ले के आ गई

मुंह बोले चाचा - मामा भी कहलवाने लगे

कोई सजीला गबरू लड़का पंडित जी बताना

अपने भतीजी - भांजी का रिश्ता है भाई

अबके साल उसको जरूर है दद्दा ब्याहना

रतजगा हुआ तो जागा सिगरा मोहल्ला

बाँध के घुंघरू नाची मुहल्ले की ताई

लाजो की माँ बन्ना गाये, ढोलक बजाये बुआ

शगुन देने की खातिर गली पूरी ही आई

हर एक को है ख़बर आज कन्यादान है

अपना हिंदुस्तान है , प्यारा हिंदुस्तान है ।




सर्वाधिकार सुरक्षित @ कवि दीपक शर्मा


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खुदा जर दे , रसूख दे और कुव्वत दे

ख़ुदा ज़र दे ,रसूख और कुब्बत दे
गरूर हिम्मत का तोड़ने की हिम्मत दे
बैचैन ज़मीं को सुकून की किस्मत दे
हर सूँ उजला दिखे ऐसी नूर नीयत दे ।


तेरे दिल मे ग़रीबो के लिए दर्द भर दे
सुर्ख रंगत तेरी गैर कराह ज़र्द कर दे
बेदार ,यतीम ,लावारिस का बने सरमाया
अल्लाह इस शज़र को जल्दी बरगद कर दे ।


तेरे हाथो को नवाजे वो हुनर से हज़ार
नाराज हो भी तो निकले बस जुबां से प्यार
तस्वीर खुद ही बोल उठ्ठे “सुभान अल्लाह”
बेहिसाब रंगों मे तेरे आये शहकार निखार ।


मैं दिल की वादियों से तुझको सदा देता हूँ
गूँज जिसकी सुने जहाँ वो दुआ देता हूँ
मुबारक तुझको ये दिन हो मेरे अहवाब अजीज़
"दीपक" मन्दिर में तेरे नाम का जला देता हूँ ।


सर्वाधिकार सुरक्षित @ कवि दीपक शर्मा
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ये ताल्लुकात , ये रिश्ते , ये दोस्ती , ये साथ ...

ये ताल्लुकात, ये रिश्ते , ये दोस्ती , ये साथ,
ये हमदर्दियाँ, ये वादे, काँधे पे ऐतबार का हाथ ,
ये हर बात पे कसमें, ये लम्बी - लम्बी करीबी बातें ,
ये जज्बात, ये तोहफे और बेशकीमती सौगातें ,
ये खून का वास्ता , ये रिश्ते - नातों का हवाला
ये हमसफ़र , ये हमकदम , ये हमनवां , ये हमप्याला ,
यकीनन तब तलक हैं जब तक तेरे पास दाने हैं
जिस दिन बिन - दाना हो गया , उस रोज़ बेगाने है ।


आज जो दम तेरा हमसाया होने का भरते हैं
तेरे इशारों से जीते हैं , तेरे कहने से मरते हैं
तेरी हर बात पर सिर हिलते हैं जिनके हामी में,
अच्छाईयाँ ही देखती हैं हस्तियां जो तेरी खामी में
सबकी पैमाईशें भी हैं वही जो तेरे पैमाने हैं
जहाँ पर पाँव तेरे हैं वहां सबके सिरहाने हैं
यकीनन तब तलक हैं जब तक तेरे पास दाने हैं
जिस दिन बिन - दाना हो गया , उस रोज़ बेगाने हैं ।


( उपरोक्त पंक्तियाँ काव्य संकलन " मंज़र " से ली गई है )


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