Saturday 29 August 2009

खुदा जर दे , रसूख दे और कुव्वत दे

ख़ुदा ज़र दे ,रसूख और कुब्बत दे
गरूर हिम्मत का तोड़ने की हिम्मत दे
बैचैन ज़मीं को सुकून की किस्मत दे
हर सूँ उजला दिखे ऐसी नूर नीयत दे ।


तेरे दिल मे ग़रीबो के लिए दर्द भर दे
सुर्ख रंगत तेरी गैर कराह ज़र्द कर दे
बेदार ,यतीम ,लावारिस का बने सरमाया
अल्लाह इस शज़र को जल्दी बरगद कर दे ।


तेरे हाथो को नवाजे वो हुनर से हज़ार
नाराज हो भी तो निकले बस जुबां से प्यार
तस्वीर खुद ही बोल उठ्ठे “सुभान अल्लाह”
बेहिसाब रंगों मे तेरे आये शहकार निखार ।


मैं दिल की वादियों से तुझको सदा देता हूँ
गूँज जिसकी सुने जहाँ वो दुआ देता हूँ
मुबारक तुझको ये दिन हो मेरे अहवाब अजीज़
"दीपक" मन्दिर में तेरे नाम का जला देता हूँ ।


सर्वाधिकार सुरक्षित @ कवि दीपक शर्मा
http://www.kavideepaksharma.com/
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