लाख बदहाली , तंगी और फाके सही
अपनी किस्मत में भूख के खाके सही
जि़स्म नंगा सही , आदमी परेशान सही
सिर पे नाचता मुश्किलों का आसमान सही
झूठ , धोखे , फरेबों का ज़माना सही
अपनों में अपना चाहे बेगाना सही
दुनिया चाहे लाख इसकी बुराई करे
गरीब, पिछड़ा कहे चाहे रुसवाई करे
फिर भी इसकी हम, हमारी ये पहचान है
अपना हिंदुस्तान है , प्यारा हिंदुस्तान है ।
और भी भला ऐसा कहीं होता है क्या
मौत हो जब किसी दूर के मकान में
आँखे रोती हैं पूरी गली की , गाँव की
शहर जाता है पूरा ही शमशान में
मातम ऐसा की जैसे गया अपना कोई
तोड़कर सारे नाते, सभी बंधन तोड़ के
नीर नयनों में भर के पीटे छातियाँ
आदमी देते विदाई सब काम छोड़ के
शहर होता है वो बसते इंसान हैं
अपना हिंदुस्तान है , प्यारा हिंदुस्तान है ।
जब मोहल्ले की कोई लड़की सयानी हुई
फ़िक्र सबको ही बस उसकी जवानी हुई
चिंता माँ - बाप से ज्यादा उन्हें खा गई
एक बुआ मोहल्ले की रिश्ता ले के आ गई
मुंह बोले चाचा - मामा भी कहलवाने लगे
कोई सजीला गबरू लड़का पंडित जी बताना
अपने भतीजी - भांजी का रिश्ता है भाई
अबके साल उसको जरूर है दद्दा ब्याहना
रतजगा हुआ तो जागा सिगरा मोहल्ला
बाँध के घुंघरू नाची मुहल्ले की ताई
लाजो की माँ बन्ना गाये, ढोलक बजाये बुआ
शगुन देने की खातिर गली पूरी ही आई
हर एक को है ख़बर आज कन्यादान है
अपना हिंदुस्तान है , प्यारा हिंदुस्तान है ।
सर्वाधिकार सुरक्षित @ कवि दीपक शर्मा
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