Saturday 29 August 2009

ये ताल्लुकात , ये रिश्ते , ये दोस्ती , ये साथ ...

ये ताल्लुकात, ये रिश्ते , ये दोस्ती , ये साथ,
ये हमदर्दियाँ, ये वादे, काँधे पे ऐतबार का हाथ ,
ये हर बात पे कसमें, ये लम्बी - लम्बी करीबी बातें ,
ये जज्बात, ये तोहफे और बेशकीमती सौगातें ,
ये खून का वास्ता , ये रिश्ते - नातों का हवाला
ये हमसफ़र , ये हमकदम , ये हमनवां , ये हमप्याला ,
यकीनन तब तलक हैं जब तक तेरे पास दाने हैं
जिस दिन बिन - दाना हो गया , उस रोज़ बेगाने है ।


आज जो दम तेरा हमसाया होने का भरते हैं
तेरे इशारों से जीते हैं , तेरे कहने से मरते हैं
तेरी हर बात पर सिर हिलते हैं जिनके हामी में,
अच्छाईयाँ ही देखती हैं हस्तियां जो तेरी खामी में
सबकी पैमाईशें भी हैं वही जो तेरे पैमाने हैं
जहाँ पर पाँव तेरे हैं वहां सबके सिरहाने हैं
यकीनन तब तलक हैं जब तक तेरे पास दाने हैं
जिस दिन बिन - दाना हो गया , उस रोज़ बेगाने हैं ।


( उपरोक्त पंक्तियाँ काव्य संकलन " मंज़र " से ली गई है )


सर्वाधिकार सुरक्षित @ कवि दीपक शर्मा
http://www.kavideepaksharma.co.in
http://www.kavideepaksharma.com

No comments:

Post a Comment