Thursday 18 August 2011

एक आवाज़ अन्ना हजारे के समर्थन में

हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे
बात अपनी अब तो कह दो ,कब तलक खामोश रहोगे
बढ के अपना मांग लो हक़,किस बात का है खौफ तुमको
कब तलक मिमयाते रहोगे ,कब तलक खामोश रहोगे ..


ख़ुद ज़हर पीकर भला क्यों, हम दूध सांपो को पिलायें
क्यों भूखे रखकर अपने बच्चें, रोटी सियासत को खिलाएं
दब के हुकुमत से रहें क्यों ,हम ही जब सरकार बनाएं
सरकार है आवाम की , फिर क्यों वो आवाम को सताएं
ज़ुल्म कब तलक सहते रहोगे, कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .

पैदा होने से मरण तक , तुम बांटते रहना बस रिश्वत
पढाई-लिखाई,और कमाई कब तलक समझोगे किस्मत
हक़ की तरह हक़ को मांगो,भीख मत तुम समझो हज़रत
वरना इन दुर्योधन के हाथों बच ना सकेगी घर की अस्मत
अब तो तुम गांडीव उठा लो ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .

हक़ है तुम्हें ये पूछने का , रंक से बने तुम कैसे राजा
ग़र है कोई आसान रस्ता ,तो मन्त्र वो सबको बता जा
या मान लो फिर सिर झुकाकर, जम्हूरियत शर्मिंदा की है
तुमने ही उनसे रहज़नी की बना रहनुमा जिन्होंने नवाज़ा
पकड़ गिरेबाँ पूछ लो आज ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .

आज फिर एक गांधी अपने घर से पैदल चल दिया है
फिर अपना जीवन आज उसने नाम वतन के कर दिया है
एक रौशनी की आस में तूफ़ान से "दीपक "लड़ लिया है
अब सम्भलों अंधेरों तुमने पहन सफेदी बहुत छल क्या है
लेकर मशाल उतरो सड़क पे ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे

@कवि दीपक शर्मा
http://www.kavideepaksharma.com

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