Tuesday, 28 September 2010

आँख बंद करके भला तमघन कैसे छट पायेंगे

आँख बंद करके भला तमघन कैसे छट पायेंगे
उठने के लिये जगना होगा , वरना जग से उठ जायेंगे

सिर्फ बातों से, कलम से और बे - सिला तर्कों - बहस से
बात तो हो जायेगी पर हासिल न कुछ कर पायेंगे

नुक्ताचीनी , मगज़मारी , माथापच्ची , बहसबाज़ी
जिस दिन करना छोड़ देंगे नये रास्ते खुल जायेंगे

ऐसी कोई मुश्किल नहीं , जिसका बशर पे तोड़ न हो
जब तोडना ही चाहेंगे तो कैसे मन जुड़ पायेंगे

"दीपक" कैसे कह दिया सच अब तेरा हाफिज़ खुदा
तू अँगुलियों की बात न कर हाथ तक उठ जायेंगे


( सर्वाधिकार सुरक्षित @ दीपक शर्मा )

उपरोक्त ग़ज़ल कवि दीपक शर्मा की अप्रकाशित रचना से ली गई है




Aankh band karke bhala tamghan kaise chat paayenge
Uthne ke liye jagna hoga , warna jag se uth jaayenge.

Sirf baaton se , kalam se, aur be-sila tark-o-bahas se

Baat to ho jaayegi par haasil na kuch kar paayenge.

Nuktachini , magazmari ,
mathapichchi, bahasbaazi
Jis din karna chod denge naye raaste khul jaayenge.

Easi koi mushkil nahi ,jiska bashar pe tod na ho

Jab todna hi chahenge to kaise man jud paayenge

"Deepak" kaise kah diya sach ab tera hafiz khuda
Tu anguliyon ki baat na kar haath tak uth jaayenge


( All right reserved @ Deepak Shrma )

This Gazal is taken from the unpublished creations of Deepak Sharma

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