Sunday, 1 March 2009

ग़ज़ल

तेरी हर बात पे हम ऐतबार करते रहे
तुम हमें छलते रहे,हम तुमसे प्यार करते रहे ।

कोशिशें करते तो शायद मंजिले मिल जाती
मगर अफ़सोस तुम वादे हज़ार करते रहे ।

नाम भी मेरा उन्हें याद तक नहीं आया
जिनको अपनों मे हम शुमार करते रहे ।

मुझको मालूम था तुम नहीं आओगे फिर भी
एक उम्मीद सी लिए इन्तिज़ार करते रहे ।

ज़िन्दगी यूँ तो गुज़र रही है पहले की तरह
पर घाव पिछले कुछ जीना दुश्वार करते रहे ।

याद आते ही तुम्हारी सीने के समंदर से
अश्क भर -भर के नयन बौछार करते रहे ।

एक घर में कहकहे और शहनाई की आवाज़
'दीपक' अरमान मेरा तार - तार करते रहे


( उपरोक्त ग़ज़ल काव्य संकलन मंज़र से ली गई है )

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