मेरे हाथों से तेरा हाथ यूँ छूटता गया ,
जैसे सितारा फलक से टूटता गया ।
गम ये नही की लुट गई हसरते - हयात
ग़म है जिसे नहीं लूटना था लूटता गया ।
बदकिस्मती कहूँ इसे या और कुछ कहूँ
जिसको भी दिल ने चाहा वही रूठता गया ।
मिलने थे जहाँ साये बिछुडे वहां पर हम
साहिल पे बदनसीब कोई डूबता गया ।
हंसती रही हयात मगर रोते रहे जज़्बात
अन्दर ही अन्दर दरख्त कोई सूखता गया
सारे जहाँ का "दीपक" इतना अफसाना है
गुल टूटता गया और गुंचा फूटता गया ।
(उपरोक्त ग़ज़ल काव्य संकलन falakdipti से ली गई है )
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aapki rachnayen dil ko choo gai
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